Gautam Buddha motivational story
नमस्कार दोस्तों आज के इस पोस्ट में गौतम बुध की एक प्रेरणादायक कहानी हम लोग पढ़ेंगे और जानेंगे कि इस कहानी में गौतम बुध कौन सी ऐसी प्रेरणा देती है तो चलिए दोस्तों पोस्ट को पढ़ना स्टार्ट करते हैं:
एक बार गौतम बुध कहीं प्रवचन दे रहे थे,अपना प्रवचन खत्म करते हुए उन्होंने आखिर में कहा जागो समय हाथ से निकला जा रहा है।
सभा खत्म होने के बाद उन्होंने अपने प्रिय शिष्य आनंद से कहा ,चलो थोड़ी दूर घूम कर आते हैं, आनंद बुध के साथ चल दिए अभी वे विहार के मुख्य द्वार तक ही पहुंचे थे, कि एक किनारे रुक कर खरे हो गये, प्रवचन सुनने आए लोग एक-एक कर बाहर निकल रहे थे।
इसलिए भीड़ सी हो गई थी ,अचानक उसमें से निकलकर एक स्त्री बुध से मिलने आई उसने कहा तथागत मैं नर्तकी हूं ,आज नगर के सबसे बड़े सेठ के घर मेरे नृत्य का कार्यक्रम पहले से तय था, लेकिन मै उसके बारे में भूल चुकी थी आपने कहा समय निकला जा रहा है तो मुझे तुरंत इस बात की याद आई धन्यवाद तथागत।
उसके बाद एक डकैत बुध की तरफ आया उसने कहा, तथागत मैं आपसे कोई बात छिपाऊंगा नहीं मैं भूल गया था ,कि आज मुझे एक जगह डाका डालने जाना था ,कि आज आपका उदेश्य सुनते ही मुझे अपनी योजना याद आ गई, बहुत-बहुत धन्यवाद।
उसके जाने के बाद धीरे- धीरे चलता हुआ एक बूढ़ा व्यक्ति बुद्ध के पास आया, उस बूढ़े व्यक्ति ने कहा तथागत जिंदगी भर दुनियावि चीजों के पीछे भागता रहा अब मौत का सामना करने का दिन नजदीक आता जा रहा है, तब मुझे लगता है कि सारी जिंदगी यूं ही बेकार हो गई ,आपकी बातों से आज मेरी आंखे खुल गई,आज से में अपने सारे दुनिया वि मोह छोड़कर, निर्माण के लिए कोशिश करना चाहता हूं।
जब सब लोग चले गए तो बुद्ध ने कहा देखो आनंद प्रवचन मैंने एक ही दिया लेकिन उसका हर किसी ने अलग-अलग मतलब निकाला, जिसकी जितनी झोली होती है उतना ही दान वह समेट पाता है निर्माण प्राप्ति के लिए भी मन की झोली को उसके लायक होना होता है इसके लिए मन का शुद्ध होना बहुत जरूरी है।
मैं उम्मीद करता हूं कि ये कहानी यदि आप सभी को अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर कीजिए और कमेंट बॉक्स में मुझे बताइए कि ये कहानी आप सब को कैसा लगा।