अलस्य को कैसे खत्म करें | HOW TO OVERCOME LAZINESS

Laziness

दोस्तों आज के इस कहानी में गौतम बुद्ध जी एक आलसी ब्राह्मण के बारे में अपने शिष्य को बताते हैं कि ब्राह्मण को इतना अवसर मिलने के बाद भी वह ब्राह्मण कुछ नहीं कर पाए इसलिए दोस्तों कहनी को ध्यानपूर्वक पढ़िए आपको बहुत ही कुछ सीखने को मिलेगा।

गौतम बुद्ध के अपने शिष्यों में एक ऐसा भी शिष्य था, जो बहुत आलसी था परंतु वे उससे भी उतना ही स्नेह करते थे जितना अन्य शिष्यों को

एक दिन गौतम बुद्ध ने उस शिष्य को एक कथा सुनाते हुए कहा की, किसी गांव में एक ब्राह्मण रहा करता था वो बहुत ही अच्छा इंसान था लेकिन उसके अंदर एक बहुत ही खराब आदत थी, काम को हटाने की हमेशा ही आज के काम को कल पर डालता रहता था वह यह  मानकर चलता था कि जो कुछ भी होता है, भाग्य से ही होता है वह बड़ा ही आलसी और कामचोर था।
एक दिन एक साधु उसके घर आया ब्राह्मण और उसकी घरवाली ने उसका खूब आदर सत्कार किया साधु ने चलते समय खुश होकर ब्राह्मण से कहा तुम बहुत गरीब हो, लो मैं तुम्हें पारस पत्थर देता हूं 7 दिन के बाद में आऊंगा और इसे ले जाऊंगा इस बीच तुम जितना सोना बनाना चाहो बना लेना।
ब्राह्मण ने पत्थर ले लिया साधू चला गया उसके जाने के पश्चात ब्राह्मण ने घर में लोहा खोजा उसे बहुत थोड़ा लोहा मिला वह उसी को सोना बना कर बेच आया और कुछ सामान खरीद लाया, अगले दिन स्त्री के बहुत जोर देने पर वह लोहा खरीदने बाजार गया तो लोहा कुछ 
महंगा था, वह घर लौट आया दो-तीन दिन बाद फिर वह बाजार गया तो पता चला कि लोहा अब पहले से भी ज्यादा महंगा हो गया है, कोई बात नहीं उसने सोचा एक दो दिन में भाव जरूर नीचे आ जाएगा तभी खरीदेंगे किंतु लोहा सस्ता नहीं हुआ, और दिन बीतते गए आठवें 
दिन साधु आया और उसने अपना पत्थर मांगा तो ब्राह्मण ने कहा महाराज मेरा तो सारा समय यूं ही निकल गया।
अभी तो मैंने कुछ भी सोना नहीं बना पाया आप कृपया करके इस पत्थर को कुछ दिन मेरे पास और छोड़ दीजिए, लेकिन साधू राजी नहीं हुआ उसने कहा तुम 
जैसा आदमी जीवन में कुछ नहीं कर सकता तुम्हारी जगह कोई और होता तो पता नहीं अब तक कितना सोना बना चुका होता।
जो आदमी समय का उपयोग नहीं जानता वह कभी सफल नहीं होगा ब्राह्मण पछताने लगा पर अब क्या हो सकता था, साधु पत्थर लेकर जा चुका था उसे  अपने आल्श्य  और भाग्य पर जरूरत से ज्यादा यकीन करने की कीमत चुकानी पड़ी इसलिए कहा जाता है कि आलस ही मनुष्य के शरीर का सबसे बड़ा शत्रु है।

 शिष्य अब बुध के कहने का तात्पर्य समझ चुका था उसने कसम खाई कि आज के बाद आल्श्य को त्याग देगा और इसके पश्चात उसने कभी आल्श्य नहीं की ।

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Gautambuddha story in Hindi 


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